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प्रकृति प्रदत्त एक दिव्य औषधि नीम

आयुर्वेद में नीम वृक्ष का प्रत्येक भाग जैसे- जड़, फल, फूल, बीज, छाल एवं पत्ते {पञ्चांग} बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ।।

नीम के पत्तों में रस कषाय होता है, जो शरीर में जाकर मधुर रस यानी ब्लड शुगर के लेवल को कम करने में सहयोग करता है ।।

प्रतिदिन नीम के पत्ते चबाने से डायबिटीज को कंट्रोल करने में सहायता मिलती है ।।

जिन रोगियों का शुगर लेवल अनकंट्रोल होने लगता है, कंट्रोल करने के लिए दवा और इंसुलिन का सहारा लेना पड़ता है,

ऐसे समय मे, नीम के पत्ते विशेष उपयोगी सिद्ध होते हैं ।।

इन पत्तों में औषधीय गुणों का भंडार होता है, जो कई बीमारियों बहुत सुंदर लाभ करता है ।।

{गुड़मार, तुलसी, व बेल पत्ते} के साथ {पांच पांच} नीम का कोमल पत्तों को एकदम प्रातः काल, चबाने से मधुमेह रोग निश्चित समाप्त होता है ।।

नीम का तेल का सेवन करने से भी डायबिटीज, मधुमेह कंट्रोल होता है ।।
नीम के छाल फल फूल पत्तों व बीज में दिव्य औषधि गुण होता है ।।

नीम की पंचांग मे एंटीवायरल, एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं ।।

नीम की जड़ और छाल को गठिया और सूजन के उपचार व संक्रमण मे विशेष लाभकारी है ।।
नीम की जड़ व छाल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है ।।
नीम की जड़ और छाल का प्रयोग मस्तिष्क व मुंह की देखभाल के लिए किया जाता है ।।
नीम की जड़ और छाल का प्रयोग, हृदय एवं पेट की समस्याओ को दूर करता है ।।

नीम को संस्कृत में ‘अरिष्ट’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है, ‘श्रेष्ठ, पूर्ण ।।
और
कभी भी नष्ट नही होने वाला, यह ओषधि, ज्वर {बुखार} में नीम के एक अंजलि पत्तों को डेढ़ लीटर पानी में खौलाकर, जब गुनगुना रह जाए तो, बुखार के रोगी के शरीर पर पोंछा लगायें, नहला भी सकते हैं
इससे तुरंत 80% लाभ मिलता है ।।

कोई भी दवा जो डॉक्टर के द्वारा रोगी को दिया जाता है, उसमें नीम के पत्तों से गर्मी गया गुनगुना जल कोई भी साइड इफेक्ट नहीं करता, क्योंकि इससे शरीर के हर रोम में जो विष होता है कीटाणु का, वह दूर होने से रोगी का शरीर शोधित होकर, रोगी स्वस्थ हो जाता है ।।
पुरातन काल से ही नीम की पूजा भारतवर्ष के प्रत्येक क्षेत्र में होती है । वास्तव में एक दिव्य औषधि है ।।
जो व्यक्ति नीम का प्रतिदिन दातून करता है, अथवा दो-चार कोमल पत्तों से अपने मुख को तीता कर लेता है, आजीवन स्वस्थ रहता है, उसे औषधि नहीं लेनी पड़ती, रोगी नहीं होता ।।
हरिकृपा ।।
मंगल कामना ।।

पं.बलराम शरण शुक्ल हरिद्वार

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