
पद 1
कूर्म उपप्राण सिखाए हमें, दृष्टि को भीतर मोड़,
इन्द्रियों को समेटकर, मन को शांति से जोड़।
जैसे कछुआ अंग समेटे, स्थिर रहे गहन ध्यान,
वैसे साधक अंतर जग में पाए आत्म-प्राण।
पद 2
अहंकार के तूफ़ानों को, यह सहज ही शांत कराए,
मन के नभ में धैर्य-सूर्य की, स्वर्णिम किरण जगाए।
थके हुए मन को सहलाकर, आशा के फूल खिलाए,
आत्मबल के अमृत से, जीवन-पथ को सुवासित बनाए।
पद 3
धैर्य-दीप प्रज्वलित करे, जब आँधियाँ घिर आएँ,
स्थिरता का अमृत बनकर, हर भय-द्वंद्व मिटाएँ।
अंतर के नीरव तट पर, विश्वास का गीत सुनाए,
कूर्म उपप्राण का संबल, हर संकट पार कराए।
पद 4
स्थिरता की मौन पुकार, है इसका गूढ़ संदेश,
आत्म-बल की अनुभूति, इसका उज्ज्वल वेश।
अंतर की गहराई में, यह साहस का दीप जलाए,
कूर्म उपप्राण का संग लेकर, जीवन को दृढ़ बनाए।
पद 5
बाहरी शोर से हटाकर, ध्यान को भीतर मोड़े,
चंचलता की धारा रोक, आत्म-ज्योति से जोड़े।
मन के अंधेरे को हरकर, विश्वास की राह दिखाए,
कूर्म उपप्राण का स्पर्श पाकर, शांति-सुगंध फैलाए।
पद 6
पलकों के पट बंद हों जब, अंतर-ज्योति दमके,
चंचलता का जाल हटाकर, मन में धैर्य चमके।
संयम का संबल बनकर, हर संशय को हर ले,
कूर्म उपप्राण साधना से, साधक सत्य को पर ले।
पद 7
धीरे-धीरे चलकर जीवन, दृढ़ता का गीत सुनाए,
कूर्म उपप्राण का बल लेकर, हर संशय दूर भगाए।
धैर्य के सागर से भरकर, आशा के दीप जलाए,
मन के नभ में शांति बनकर, हर पीड़ा को सहलाए।
पद 8
ग्रहों में शनि-सा धैर्य, मंगल-सा साहस लाए,
चंद्र की शीतलता संग, बुध का विवेक जगाए।
कूर्म उपप्राण संबल दे, गुरु का ज्ञान दिलाए,
राहु-केतु से सावधान कर, सूर्य का तेज संवराए।
पद 9
तनाव, भ्रम और भय सभी, इस नीरवता में खोएँ,
स्थिरता की गोद में आकर, हम सत्य-रत्न संजोएँ।
अंतर-ज्योति के आलोक से, हर अँधियारा मिट जाए,
कूर्म उपप्राण का बल पाकर, जीवन पथ प्रकाश पाए।
पद 10
संदेश यही गहन मगर, सरल और सदैव महान,
शांति, संतुलन, सहनशीलता से, खिले हर प्राण।
धैर्य की सरिता बहाकर, हर कलह को दूर हटाए,
कूर्म उपप्राण का स्नेह-स्पर्श, जग में समभाव जगाए।
योगेश गहतोड़ी “यश”