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मां स्कंदमाता की पूजा का महत्त्व

“या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रुपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”
नवरात्रि का पांचवा दिन स्कंदमाता के रूप में पूजा की जाती है। स्कंदमाता मोक्ष के द्वारा को खोलने वाली माता हैं। मां स्कंदमाता अपने भक्तों की विनती जरूर सुनती हैं और भक्तों के समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। स्कंदमाता नवदुर्गाओं में स्कंदमाता पंचम रूप में विराजती हैं। मां स्कंद माता की महिमा अपरंपार है। इनकी पूजा से भक्तों को उत्तम संतान, मानसिक शांति ,आत्मविश्वास और जीवन में समृद्धि प्राप्त होती है।
नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है और ज्ञान और आंतरिक शांति प्रदान करती हैं। स्कंदमाता का स्वरूप ममता, करुणा और साहस का प्रतीक है, जो अपने भक्तों को सभी इच्छाओं की पूर्ति और मोक्ष का आशीर्वाद देती हैं। इनका नाम भगवान स्कंद (कार्तिकेय )के कारण पड़ा है। सिंह का वाहन है।मां स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं और उनकी गोद में बालक कार्तिकेय सुशोभित होते हैं। मां स्कंदमाता देवी दुर्गा का वह स्वरूप है,जो ममता मातृत्व और शक्ति का सम्मिश्रण है।
“ऊँ ऐं ह्लीं क्लीं स्कंद मातायै नमः “
इनकी पूजा करते समय इंद्रियों और मन पर पूर्ण नियंत्रण रखना और सांसारिक बंधनों से मुक्त होने की आवश्यकता है। भक्तों को अनन्य भक्त और समर्पण के साथ इनकी पूजा करनी चाहिए जिससे हमें स्कंदमाता और भगवान स्कंद दोनों की कृपा प्राप्त होती है।

डॉ मीना कुमारी परिहार

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