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सच्चा

तन रोगी, मन झूठा,
इश्क़ ढोंगी, दिल सच्चा।

नैना फरेबी, देह जूठा,
तू मिथ्या, पर हुस्न है सच्चा।

मिले कई अपनी-सी बन के,
मुखड़ों पर नक़ाब पहन के सच्चा।

चेहरा बेईमान, थी आँख कपटी,
फिर भी तेरी यादें सच्चा।

मरने न देंती मुझको ये चाहतें,
ज़िंदा रोज़ तड़पाती हैं सच्चा।

तेरी ज़ुल्फ़ें हैं शोर मचाती,
नख़रिली आँखें खूब सुहाती सच्चा।

रातों ने जलाए तमाम अरमान,
दिन ने मारे गाल पर चाटा सच्चा।

सुबाह-शाम मिल न पाऊँ मुझ,
यही है मेरी प्रेम की गाथा सच्चा।

अगर चाहें तो तख़ल्लुस डालें
रूपेश भी कहे,
यह दिल का अफसाना सच्चा।
आर एस लॉस्टम

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