
यह दुनिया
एक रंग मंच है, एक सफर है।
हम सब
अपना अपना किरदार निभाने आते हैं।
हर किरदार की
मंजिल अपनी अपनी है,
राहें अलग हैँ।
कौन कितनी दूर चलेगा,
कौन साथ चलेगा, कहां तक चलेगा,
मंजिल कौन सी है??
यह किसी को नहीं पता है।
पूर्व निर्धारित कार्य लेकर
हर किरदार इस सफर में आता है।
यह जीवन
उस बाधा दौड़ की तरह है,
जहां, हम बाधा
किस खूबसूरती से पार करते हैं
और अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं,
यह हमारा निर्देशक, वह परमपिता
हरदम देखता है,नजर रखता है।
जब जरूरत पड़े,
वह संभालता भी है।
हर एक की
मंजिलअपनी अपनी होती है
और हर एक का
अपना अपना सफर होता है।
सुलेखा चटर्जी