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पर्यावरण और बिगड़ते हम

    विज्ञान की इस युग में मानव को कुछ वरदान मिले हैं वहीं कुछ अभिशाप भी मिले हैं।प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप है, जो विज्ञान की कोख से जन्म लिया है जिसे सहने के लिए हम सभी मजबूर हैं। बिगड़ता पर्यावरण प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसके कारण हमें सिर दर्द, ब्रोंकाइटिस, हृदय की समस्याएं, फेफड़ों का कैंसर, हैजा ,टाइफाइड बहरापन आदि का सामना करना पड़ता है।
    बिगड़ता पर्यावरण प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं --चीन में प्रमुख प्रदूषण हैं -वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। 

वायु प्रदूषण-महानगरों में यह प्रदूषण ज्यादा फैल है। वहां 24 घंटे कल कारखानों का धुआं, मोटर वाहनों का काला धुआं इस तरफ फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दुभर हो गया है।
जलप्रदूषण–कल कारखानों का दूषित जल नदी नालों में मिलकर भयंकर चल प्रदूषण पैदा करता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती हैं।
ध्वनि प्रदूषण–मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परंतु आज कल -कारखाने का शोर , यातायात का शोर, मोटर गाड़ियों की पों- पों, लाउडस्पीकरों की कानफाड़ू शोर ने
बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।
प्रदूषण बढ़ने के कारण–प्रदूषण को बढ़ाने में कल कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग फ्रिज ,कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है। वृक्षों को अंधाधुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ गया है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली ना होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।
प्रदूषणों के अधिक दुष्परिणाम–इन सभी प्रदूषणों के कारण मानव स्वास्थ्य जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लंबी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। सुखा, बाढ़,ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का
कारण भी प्रदूषण है।
हम इसमें सुधार ला सकते हैं। विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए ताकि हरियाली की मात्रा अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष लगाएं। आबादी वाले क्षेत्र को खुला रखें। हवादार हो, हरियाली से ओत-प्रोत हो। कल कारखानों को आबादी से दूर रखना रखें उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय को सोचना चाहिए। अपनी कर में यात्रा करने की संख्या कम करना चाहिए। चिमनी और लकड़ी के चूल्हे का उपयोग कम करें। पत्तियां ,कचरा और
अन्य सामग्री जलाने से बचें।

डॉ मीना कुमारी परिहार

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