
प्रीत मेरी हे ऐसी श्याम से प्रियतम,
देखों मेरी रीत ,ऐसा रंग में लायेंगी।
हृदय वार दूं, में ये प्यार वार दूं,
होह-होह घनश्याम ऐसे रंग में ढुबोयेगी।
रूप ये निराला मेरी प्रियतम की आंखों का,
मीत मेरे रंग की ,ये मुझको रंगायेगी।
नज़र उतारूं मैं, काजल लगाऊं तुम्हें,
ओह-ओह मोहन ,मेरी प्रीत बन जायेंगी ।
समर्पण का भाव हो,सदभाव आसपास हो।
देख प्रेम की भाषा में, मुझको उलझायेगा।
राह में देखूं तेरी, सपने सजाऊं तेरे।
हां हां मोहन, मुझे कब अपनाएंगे।
तितली बन जाऊं,तेरे हाथों पे आऊंगी।
नित उठ सुबह में, दर्शन को आऊंगी।
शीश पे चढ़ाऊं में, चरणों की धुल को।
ओह-ओह ब्रज की, मैं रज बन जाऊंगी,
हां हां मोहन तेरी ,प्रीत बन जाऊंगी”
नीतू धाकड़ (अम्बर) नरसिंहगढ़ मध्यप्रदेश