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काश


पता नहीं क्यों आजकल
मैं सपने देखती हूं।
सपनों में नई पीढ़ी को
देश का भविष्य संवारते देखती हूं।
तमाम असंभावनाओं, विषम परिस्थितियों से
लड़कर आगे बढ़ते देखती हूं।
देश और जाति पाति की
सरहदों से ऊपर उठकर,
मानवता की सेवा करते देखती हूं।
अंतरिक्ष ज्ञान से लेकर चिकित्सा क्षेत्र तक
नये नये आयम प्रतिष्ठित करते देखती हूं।
मैं सपने देखती हूं—
नई पीढ़ी की आंखों में
हंसते भविष्य को देखती हूं।
काश! मेरे सपनों की गूंज
परमपिता तक पहुंच जाए,
परमपिता “तथास्तु” बोल जाएं।

सुलेखा चटर्जी

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