
शैलपुत्री अडिग हिमशृंग समान ।
दृढ़ता से करती जीवन का गान ॥
ब्रह्मचारिणी तप की ज्योति बने ।
धैर्य सुधा से मन को शीतल करे।।
चंद्रघंटा की दिव्य ध्वनि प्रखर ।
अन्यायों पर वार सदा अमर ॥
कूष्मांडा भीतर सृष्टि प्रकटाए ।
अंधकार क्षण में ज्योति जगाए ॥
स्कंदमाता ममता मधुर बरसाए ।
कर्तव्य बीज हृदय में उगाए ॥
कात्यायनी सत्य का दीप जलाए।
अन्याय तिमिर पथ से हटाए ॥
कालरात्रि तम में भी ज्योति जगाए ।
भय के बंधन टूट स्वयम् विलगाए।।
महागौरी निर्मल श्वेत समान।
शांति सुधा भर दे हृदय के प्राण।।
सिद्धिदात्री वर हर साधक पाए ।
पूर्णत्व का रस जग में छाए ॥
ऋचा चंद्राकर “तत्वकांक्षी”
महासमुंद