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घड़ी

टिक-टिक करती घड़ी
और धक-धक करता दिल
सब, इसका ही खेल है ‌
रुकना नहीं निरंतर चलना
यह, जीवन की रेल है।

वक्त कहां थमता है
उसकी तेज रफ्तार है ।
कद्र करे जो समय की
सफलता का सच्चा हकदार है।

घड़ी-घड़ी में जाने
कितना कुछ बदल जाए।
हो कुछ लम्हे दुख के
तो पल में खुशी दिखा जाए ।

धक-धक, टिक-टिक यही सिखाती
रुकना नहीं बस चलते जाना है
हर घड़ी का अपना अनुभव
निरंतरता को स्वीकारना है।

उर्मिला ढौंडियाल ‘उर्मि’…..

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