
तोर सुरता मां, आज होले कोन जाने अब्बड़ जनाइस ,
रही रही के मोर आंखी के डबरा ल उछलत ले भराईस।
रथीया ले बिहानिया होगे कतका जहान सोर नि मिलिस,
भेरीभेरी तोर सुरता हर अक्षरा अक्षरा रोआईस ।
कतको समझाए, बुझाए ले कहा मन भऊरा बुझत हे,
एक एक ठीक गोठ ला तोर मन मन में गुनत हे ।
अब्बड़ दूरियां चलदे तेहर, मोर सुरता तोला निआईस का,
बिलखत छोड़के रेंग देहस, दुसर देश हर तोला भाइस का।
तोर बिन जीबन नि सुहावै, जम्मो अंग होये हे छुन्ना छुन्ना,
मैके के गलीभी नि भावत हे ,जिसने बिन पैइसा के मुना।
धरे धरे जिसने किन्दरत रहय्य ,तोर कानी ल अचरा के,
कोरी म आऊ घा लुका देनओ दाई जैसे छहीया अमरा के।
तोर सुरतामां , आंखी फुटत हे रोवत हे काथीं खोर,
कहा लुका गए तेहर दाई, तोरले अंगना में रहीस अंजोर।
तोर कस सुघर छऊरा मिले,मैं तोरेच रहांव दुलारी ओ ,
जम्मोजनम तोर लइका बनो तेहिच बनबे मोर महतारीओ।
श्रीमती अंजना दिलीप दास