
मैं आजकल गीत गाने लगा हूँ,
इतिहास का काला सच बताने लगा हूँ।
जो बाँटते हैं देश को लालच में अंधे,
उनकी हकीकत अब दिखाने लगा हूँ।
बकरी के दूध की कीमत जानना चाहता,
गरीब की हालत समझाने लगा हूँ।
दोमुंहे लीडरों के किस्से लिखकर,
उनके मुखौटे उतारने लगा हूँ।
भूले हुए क्रांतिकारियों की यादें,
रद्दी किताबों में ढूँढने लगा हूँ।
जिन्हें छिपा दिया गया था जानबूझकर,
उन्हीं नामों को जगाने लगा हूँ।
अब “शहीद” को बस “शहीद” ही लिखकर,
दिल से श्रद्धांजलि देने लगा हूँ।
राष्ट्रपिता तो हैं — ये मान लिया मैंने,
पर राष्ट्रमाता को बुलाने लगा हूँ।
धरती तो माँ है, राष्ट्र पिता अगर हैं,
फिर नया आसमान बनाने लगा हूँ।
क्योंकि “राष्ट्र के पिता” कहने का ढोंग,
अब मुझे उपहास लगने लगा हूँ।
रूपेश सिंह लॉस्टम