
ऐसे भी ना इतरा ए चांद
तू अपनी खूबसूरती पर,
मैंने भी तो छिपा रखा है
एक प्यारा सा चांद इस धरती पर।
कैसे कह दूं ए चांद
कि तुझसे खूबसूरत कोई नहीं,
कभी धरती पर आकर तो देख
मेरे चांद सा सुंदर तो तू भी नहीं।
घिर जाओ गर कभी बादलों से
तुम्हें भी जरूरत हो रोशनी की,
मिल लेना तब तुम मेरे चांद से
ले लेना उधार थोड़ी चांदनी भी।
खाते होंगे कसमें तेरी खूबसूरती की
पर मेरा चांद भी कुछ कम नहीं,
जब होगी मुलाकात तो देखोगे तुम
उनकी रोशनी भी तुमसे कुछ कम नहीं।
प्रमोद सामंतराय
सरायपाली, महासमुंद (छ.ग.)