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आज फिर लगा कि

गहन सघन मेघ देख
 दुपहर की धूप शायद सिमट गई थी।
ढेर सारी बातें याद आई थी,

आज फिर लगा कि वह बातें
शायद अधूरी रह गई थी।
मन के कोने से जाने कितने
अधूरे लम्हों ने सिर उठाया था।
“हम भी तुम्हारे दिल में है”,याद दिलाया था—
आज फिर लगा कि कुछ बातें
आधी अधूरी ही अच्छी होती हैं।
आधा चांद,आधी रात, मन में छुपी
कोने में कहीं दबी,आधी बात।
होठों पर मुस्कान लिए,मन की टीस दबाये
बीत रही जिंदगी,एक पहेली है।
यह गहरी काली बादली भी, मेरी तरह अकेली है।

सुलेखा चटर्जी

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