
मौन अनंत की भाषा है ।
मौन ही सर्वोत्तम जप है ।।
मौन संसार के रहस्यों को उजागर करता है ।।।
संसार में प्रत्येक वस्तु का एक स्वाभाविक गुण होता है—
— अग्नि का धर्म है ताप देना ।
— जल का धर्म है शीतलता प्रदान करना ।
— अन्न का धर्म है अतृप्त को तृप्त करना ।
— ठीक उसी प्रकार मनुष्य का भी एक धर्म है—
मैत्री और करुणा के साथ रहकर दूसरों का कल्याण करना ।।
परन्तु आज का मनुष्य–
अक्सर अपने स्वाभाविक गुणों को भूलाकर विवाद, प्रतिस्पर्धा और अहंकार में उलझ जाता है ।
परिणामस्वरूप उसका जीवन अशान्त और असन्तोषपूर्ण हो जाता है ।
ऐसे समय में “मौन” का महत्व और भी बढ़ जाता है ।।
मौन क्यों सर्वोत्तम जप है ?
मौन केवल वाणी को रोकना नहीं है, बल्कि यह मन को स्थिर और विचारों को संयमित करने की साधना है । जब मनुष्य मौन में प्रवेश करता है तो वह भीतर की गूंज को सुन पाता है, भीतर के बहुत सारे रहस्यों कुछ समझ पाता है ।
यही अवस्था उसे ईश्वर के निकट ले जाती है ।
- वाणी में संयम आने से कटुता समाप्त होती है। • विचारों का शुद्धिकरण होता है। • मन और आत्मा की शक्ति जागृत होती है।
• बिना कुछ कहे भी आत्मीयता और प्रेम प्रकट होता है ।।
मौन से ही आत्मा की सच्ची भाषा प्राप्त होती है ।।
जिस प्रकार दीपक बिना चिल्लाये किए प्रकाश देता है, उसी प्रकार साधकों के मौन से समाज को शांति और कल्याण का संदेश प्राप्त होता है ।।
मनुष्य का वास्तविक धर्म–
जिस प्रकार अग्नि अपने ताप से, जल अपनी शीतलता से और अन्न अपनी तृप्ति से संसार की सेवा करता है–
वैसे ही मनुष्य का भी गुण है—
• मैत्री भाव रखना,
• सहानुभूति दिखाना,
• दूसरों के जीवन में प्रकाश फैलाना ।
यही मनुष्य का परम धर्म और सच्चा आभूषण है ।।
जीवन में मौन साधना को अपनाना और साथ ही मैत्रीभाव से दूसरों का कल्याण करना ही सच्ची मनुष्यता है ।
यह मौन ही सर्वोत्तम जप है, जो मन को शांत, आत्मा को संतुष्ट और समाज को कल्याणकारी बनाता है ।।
इसलिए जितना भी समय मौन रह पाए उतना ही सुंदर !!
हरि कृपा !!
मंगलकामना !!