
जब आए परीक्षा की घड़ी,
मत घबरा, हो जा तू खड़ी।
काँपते हाथों को थाम ले,
चढ़ जा सपनों की सीढ़ी।
कलम को तू तलवार बना,
ज्ञान तेरा हथियार बना,
हर प्रश्न से तू भिड़ जाए,
हर उत्तर में उजियार बने।
पसीने की हर एक बूँद में,
मेहनत की गाथा बसती है,
जो दिल से करता है कोशिश,
उसकी दुनिया हंसती है।
कभी जो सवाल कठिन लगे,
तो रुक के साँसें भर लेना,
आँखें मूँद के सोच जरा,
‘मैं कर लूंगा’ ये कह देना।
हार अगर दरवाज़े पर हो,
तो दरवाज़ा बदल देना,
डर से कह दो — “अब दूर हटो”,
और उम्मीदों को गले लगाना।
परिणाम से पहले मत डर,
रास्तों को पहचान ज़रा,
सफलता वो ही पाती है,
जो गिरकर फिर से चल पड़ता।
तो ऐ परीक्षार्थी मत रुकना,
हर दिन एक नया उजाला है,
परीक्षा बस एक पड़ाव है,
मंज़िल तो अभी बाकी सारा है।
सुनीता बंसल, पुणे महाराष्ट्र।